उपन्यास >> ज्ञान सिंह शातिर ज्ञान सिंह शातिरखुर्शीद आलम
|
0 |
चेहरा है गमे दह्न में जलती-सी किताब
आँखें हैं उम्मीदों के फ़सुर्दः से गुलाब।
जीने की तमन्ना पे गुमाँ है-ऐसा
घर लौट के आता है कोई खानःख़राब।
– ‘शातिर’
प्रस्तुत उपन्यास ज्ञान सिंह ‘शातिर’ अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित उर्दू रचना का अविकल हिन्दी अनुवाद है। यह एक ऐसी अद्भुत कृति है, जिसके बारे में विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस प्रकार की रचना इससे पहले उर्दू में नहीं लिखी गयी। यह एक असाधारण कृति है, जिसे आत्मपरक उपन्यास कहा गया है, ज़िन्दगी की आतिशी भट्टी से निकला हुआ ऐसा अंगारा है, जिसे ‘शातिर’ ने हँसते-हँसते अपने हाथ में ले लिया है और उँगलियाँ जला डाली हैं।
यह रचना श्री ज्ञान सिंह “शातिर” की जीवन भर की साधना और तपस्या की सफल एवं सार्थक परिणति है। इसमें जिस अदबी निर्भीकता और जुर्रत से अपने व्यक्तित्व को बेनक़ाब किया गया है, इन्सानी रिश्तों की जिन भावात्मक गिरहों को खोला गया है, क़स्बात के कच्चे घरों और खुले खेत-खलिहानों में पोषित जफ़ाकश सिख मनोविज्ञान के रहस्यों को जिस तरह उभारा गया है, सोच की जिस लेज़र किरण से अनुभवों को जितनी सूक्ष्मता से खुरदरे यथार्थ के हुस्न और मासूमियत के आर-पार देखा गया है एवं जिस सशक्त शिल्प और खुले हुए अनौपचारिक, प्रभावपूर्ण विस्तार का प्रयोग हुआ है, वह अपनी मिसाल आप है।
कथा-साहित्य के पाठकों के लिए बेहद रोचक और विचारोत्तेजक कृति।
|